अनगिनत रोगों का नाशक : अमरूद I Benefits of Guava in Ayurveda



जब प्राकृतिक चिकित्सक फल खाने की बात करता है तो लोगों की दृष्टि मेें- सेब, नासपाती व अंगूर ही घूम जाता हैं औव वे इसे इत्यंज महंगी बात समझ कर उस और ध्यान नहीं देते। पर ऐसा नहीं है। बहुत से सस्ते फल भी महंगे फलों के समकक्ष ही हो बैठते है, यथा अमरूद (जामफल) को यदि ‘गरीबों का सेव फल’ कहा जाये तो किसी प्रकार की अतिश्योक्ति न होगी।
अपनी लाभ शक्ति के कारण ही सम्भवतः इसे संस्कृत में ‘अमृत’ अथवा ‘अमृतफल’ नाम प्राप्त हुआ। संस्कृत में इसे बहुबीज भी कहते है।
हिन्दी में – अमरूद या जामफल, गुजराती में जमरूख, या जामफल और मराठी में पैरू कहते हैं।
इसकी दो जातियाँ होती है एक लाल और दूसरे सफेद सबसे अच्छे अमरूद लखनऊ और इलाहाबाद में होते हैं और इनका वजन कभी-कभी आधा किलों तक हो जाता है।इसमें दो वर्षाें के बाद फल आते हैं।इसकी लकडी मजबूत और चिकनी होती है,इससे बन्दूक के कुन्दे बनाए जाते हैं।इसका रायता बहुत अच्छा बनता है। पक्के फल खाते समय अगर काली मिर्च, नमक और नींबू का उपयोग किया जाये तो अधिक खाना भी हानि नहीं करता, स्वाद भी बढ़ जाता है। अमरूद अधिक खा लेने से ज्वर चढ़ आता है। यह ठण्डे होते हैं।
अमरूद का सही और पूरा-पूरा लाभ प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि न तो इसका छिलका ही उतारा जाए और न बीज ही फेंका जाए। महात्मा गांधी ने इसके बीजों की एक बार परीक्षा करवायी थी, उन्हें प्राप्त रिपोर्ट में कहा गया कि अमरूद के बीजों में विटामिन ‘‘बी’’ प्रचुर मात्रा में हे। अतः बीजों को भी भरसक चबा-चबाकर खाने का प्रयास करना चाहिए।
अमरूद बड़ा अच्छा सौम्य रचक है। इसके नित्य प्रयोग से व्यक्ति मलावरोध से मुक्त हो सकता। इससे विटामिन ‘‘सी’’ की प्रधानता होने के कारण दाँतो के रोग, पाचन संस्थान की क्षीणता, लकवा या पक्षाघात, ब्लडप्रैशर का बढ़ना, अस्थि विकृत या कमजोरी, ग्रंथिवात, उन्माद, सामान्य फोड़े फुंसी था रक्त विकार, अर्श (बवासिर की प्रारंभिक अवस्था) जुकाम, नज़ला, पुरानी खाँसी, भांग का नशा, गर्भवत महिला की अधिक वमन (उल्टी), रक्त दोष आदि विकार तथा शक्ति हीनता आदि समस्त रोगों को समाप्त करने की क्षमता है। यह कब्ज, अजीर्ण, मन्दाग्नि व गैस ट्रबल का शत्रु है अमरूद।
आयुर्वेद ग्रंथों मेें – इसे, कसैला, स्वादु, अम्ल, शीतल, तीक्ष्ण, हृद्य, शुक्र जनक तथा वात, पित्त, उन्माद, भ्रम, मूर्छा, कृमि, तृषा, श्रमशोथ, विषमज्वर और विदाह का नाशक कहा गया है। यह वात का दमन करता है यह क्षुधावर्द्धक है तथा हृदय व मस्तिष्क के लिए बल प्रद है।
वनौषधि-कोष में- अमरूद के लिए कहा गया है कि, यद्यपि मौसम पर जब तक अमरूद मिले खाना चाहिये, शीतकाल में इसका बड़ा ही लाभदायक है। शीतकाल में यह विशेष रूप से बलकारक, तृप्तिकारक व गुणकारक होता है। चिर काल से रूके हुए जुकाम पर अमरूद वास्तव में अमृत का ही काम करता है। यदि जीर्ण जुकाम का रोगी 2-3 दिनों तक मात्र अमरूद ही खाकर रह जाये तो निश्चय ही उसका जुकाम इस अवधि में चला जायेगा।
अमरूद में प्रतिशत 299 मिलीग्राम विटामिन ‘सी’ होता है, विटामिन सी का मुख्य काम ही शरीर से विषाक्त तत्वों को निकाल फेंकना है। अतः यह सस्ता और सर्व सुलभ फल कितना शरीर शोधक हो सकता है यह बात भलीभांति समझी जा सकती है। हमने ऊपर अमरूद को गरीबों का सेवफल कहा है अतः अर्वाचीन वैज्ञानिक विश्लेषण यहाँ दे रहे है उससे यह बात पुष्ट हो जायेगी।
अमरूद-जल 76ण्1 प्रतिशत, प्रोटोन 1ण्5 प्रतिशत, वसा 2 प्रतिशत, खनिज पदार्थ 7ण्8 प्रतिशत, रेखा 6ण्9 प्रतिशत, कार्बोहाईड्रेट 14ण्6 प्रतिशत, कैल्शियम 0ण्1 प्रतिशत, फास्फोरस ण्44 प्रतिशत, 1ण्0 लोहा प्रतिशत।
सेब-जल 85ण्9 प्रतिशत, प्रोटीन 0ण्3 प्रतिशत, वसा 0ण्1 प्रतिशत, खनिज पदार्थ 0ण्3 प्रतिशत, कार्बोहाईड्रेट 13ण्4, कैल्शियम 0ण्01 प्रतिशत, फास्फोरस 0ण्02 प्रतिशत, लोहा 1ण्7 प्रतिशत, विटामिन ‘‘बी’’ 40ण्0 प्रतिशत, विटामिन ‘‘सी’’ 2 प्रतिशत।
प्राकृतिक चिकित्सक जब वस्तुतः फल खाने की बात करता है तो उसकी दृष्टि एलोपैथी अथवा आयुर्वेदिक सिद्धांतो की ओर नहीं होती। प्राकृतिक चिकित्या का भोजन सम्बन्धी सिद्धान्त बड़ा सरल है।
उसकी दृष्टि से हम खाद्य पदार्थों को दो श्रेणियों मेें विभक्त कर सकते है- अम्लकारक और क्षारवर्द्धक। मैदा, चीनी, चाय, अन्न आदि अम्ल कारक पदार्थ है ओर फल, सब्जी क्षार वर्द्धक है। जब शरीर में अम्ला की वुद्धि होती है, उसी समय आदमी बीमार होता है और स्वास्थ्य होता है।
और क्षार खाद्य मनुष्य को स्वास्थ्य खराब होता है। और क्षार वर्द्धक खाद्य मनुष्य को स्वास्थ्य लाभ कराता है तथा उसके शरीर में अम्लता को कम करता है।
कुछ प्रयोग-
1 कफन खाँसी- में, आग में भुने हुए अमरूद को खाते रहने से, कफ जन्य खांसी में लाभ होता है, सुबह खाली पेट खाना चाहिए।
2 पेट में गड़बड़ी होने पर- अमरूद की कोंयलो को पीस कर पिलाना चाहिए पानी मिलाकर।
3 ठंडक के लिए- अमरूद के बीजों को निकाल कर पीसे और लुगदी को गुलाब जल में शक्कर मिलाकर गुट-पुट करके पिएं।
4 भाँग के नशे पर- अमरूद के पत्तों का रस पीना या अमरूद खाना चाहिए।
5 पाचन शक्ति के लिए- छोटे बच्चों को कच्चा अमरूद पानी में पीसकर चम्मच से पिलाएं व वृद्धो को, जिन की पाचन शक्ति क्षीण हो अमरूद दोपहर बाद भोजन के उपरांत देवें।
6 दन्तशूल पर- दाँतो में दर्द होने पर अमरूद के ताजा पत्ते चबा-चबा कर रस चूसे।
7 कांच निकलना – प्रथम-कांच गुदा के भीतर करके उस स्थान पर कुछ दिनों तक अमरूद के पत्तों की लुगदी बनाकर बांधने से बच्चों की कांच निकलने की बीमारी ठीक हो जाती है। द्वितीय अमरूद के काढे से(अमरूद पानी में उबाल ने को काढ़ा कहते है) टट्टी जाने के उपरांत गुदा को प्रक्षालन (धोने) करने से गुदा संकुचित हो जाती है। और कांच निकलने की शिकायत दुर हो जाती है।
– मनोहर आश्रम, स्थान उम्मैद पुरा
पो0 तारापुर (जावद)

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