एक राजपूती शौर्य गाथा, बहादुर कौन



बूढ शक्तावत सरदार की क्रोध से आखें लाल हो गई। चेहरा तमतमा उठा नथुने फड़कने लगे।
‘‘हममें महाराणा ने कहाँ कमजोरी देखी जो हमसे हरावल का अधिकार छीना जा रहा है? यह हमारा पुश्तैनी हक है।’’ शक्तावत भरे दरबार गरजे।
महाराणा प्रताप की मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र अमर सिंह महाराणा बने।
समयवयस्क युवक चम्पावत सरदार उनके अभिन्न हृदय एवम् घनिष्ठ मित्र थे। उन्होंने महाराणा से प्रार्थना की कि मेवाड़ की सेना में अब हरावल में युवकों को स्थान मिलना चाहिये जिससे कि युद्ध में भी वे अपना अद्भुत शौर्य प्रर्दशित कर सके। हरावल सेना के सबसे आगे भाग को कहते है जो मेवाड़ के गौरवशाली ध्वज को लेकर चलता है, यह सम्मान महाराणा प्रताप ने शक्तावत को दिया था।
मित्र प्रेम के वशीभूत महाराणा अमरसिंह ने फर्मान निकाल दिया कि अबसे यह सम्मान चम्पावतों को दिया जाता है।
शक्तावत सरदार को इसमें अपना बड़ा अपमान लगा। बड़ी-बड़ी आँखें वाले सफेद मूंछों के शक्तावत सरदार के इस आक्रोश युक्त प्रश्न को सुनकर महाराणा अमरसिंह सकते मंे आ गये। सिंहासन के पास खडे़ चम्पावत ने स्थिति भाँप ली। राणा की रक्षा मे आगे आते हुए बोले।
‘‘काको सा ! सैनिक राजाज्ञा माननी चाहिए। महाराणा  का हुकुम हो गया है, बस आपके लिए इतना ही काफी है।’’
‘‘नहीं, मुझे बतलाया जाय कि महाराणा ने हममे कहाँ कमजोरी देखी? अभी भी इन भुजाओं में और शक्तावतों में इतनी शक्ति है कि मुगलों की ईंट से ईंट बजा सकें।’’
चम्पावत सरदार होठों ही होठोें मुस्करायें । शान्त स्वरों मंे बोले ‘‘अब आपको विश्राम करना चाहिए। ये आयु आपकी हरावल मंे रहने योग्य नहीं है।’’
शक्तावत सरदार क्रोध में उफन पडे़। ‘‘कौन कहता है कि आयु हम पर हावी हो गई है। हमारी तलवारों की धार अभी भी पैनी है।’’
‘‘युद्ध मे केवल पैनी तलवार ही नहीं फुर्ती की भी आवश्यकता होती है।’’ शक्तावत ने ताना मारा।
शक्तावत ने भरे दरबार मंे म्यान में से तलवार खींच ली और बोले ‘‘है किसी मंे दम जो मेरी तलवार की धार और फुर्ती को देख सके?’’
महाराणा अमरसिंह के तो काटो खून नहीं। सारे दरबार मंे खलबली मच गई। लेकिन चम्पावत सरादर बिल्कुल भी नहीं घबराये। उन्होंने तलवार भी निकाल ली। स्थिति ऐसी बन गई थी कि मेवाड़ के दो शक्तिशाली सरदार एक दूसरे के खून से नहाने को तैयार थे।
इस विषम परिस्थिति में मन्त्री  गंगाप्रसाद ने आकर महाराणा के कान मेें कुछ बात की गम्भीर स्वर में घोषणा की ‘‘महाराणा जी का हुकम है कि उदयपुर के उत्तर पश्चिम मंे उँटाला के दुर्ग पर अभी तक मुग्लों का हरा झण्डा फहरा रहा हैं। शक्तावतों और चम्पावतों में से दुर्ग मंे जो पहले प्रवेश कर जाएगा, वही हरावल के सम्मान का अधिकारी होगा।’’
अभी घोषणा पूरी समाप्त भी नहीं हुई थी कि तलवारेें वापस म्यानों में चली गई और मैदान खाली हो गया।
चम्पावत सरदार ने तुरन्त अपनी सेना को कूच करने का हुक्म दिया और उनके घुड़सवार उँटाला दुर्ग की तरफ दौड़ पड़े।
ऊँटाला दुर्ग एक छोटी सी पहाड़ी पर स्थित था परन्तु उसकी दीवारें सीधी सपाट उँची खड़ी थी इसीलिए यह अभी तक अभेद रहा। इसके बुर्ज पर खड़े मुगल सैनिक ने एक ओर से धूल का गुबार उठता देखा । वह चिल्लाया दुश्मन की फौज आ रही हैं।’’ इतने मंे उसे दूसरी ओर से धूल का गुबार उठता फिर दिखा।
उसने सावधान किया ‘‘दो तरफ से हमला हो रहा है।’’
चम्पावत युवक फुर्तीले थे, परन्तु अनुभवहीन थे। जोश जोश मंे अपने हथियारों सहित तुरंत आ तो गये परन्तु खड़ी दीवारोें पर चढ़ने के लिए उनके पास कोई साधन नहीं था । उनके घुड़सवारों ने पूरे दुर्ग का एक चक्कर लगाया कि कोई स्थान दीख सके कि वे दीवारों की ओर से दुर्ग में दाखिल हो जाएँ। ऐसा कोई स्थान नहीं था। दुर्ग का चक्कर समाप्त करते-करते उनके हाथी जो पीछे रह गये थे, वे भी आ गये थे। चम्पावत ने महावत कों आज्ञा दी-
‘‘ किले के दरवाजे पर हमला करो’’
महावत ने हाथी को किले के जंगी दरवाजे की और दौड़ाया।
इस समय शक्तावत भी आ गये। वे अनुभवी थे। सदैव हरावल में रहने से उन्हे अनुभव हो गया था। जब उनकी सेना का कूच का डंका बजता था तो उनके सैनिक अपने साथ किले की दीवार पर चढ़ने के लिए रस्सियाँ तथा नसैनिया साथ लेकर ही चलते थे।
शक्तावतों ने आते ही किले की दीवार पर हमला कर दिया। सबसे आगे शक्तावत सरदार अपनी फौज को जोश दिलाते चढ़ रहे थे।
चम्पावतों ने देखा कि गजब हो गया । ये शक्तावत दीवार पर चढ़ कर अभी किले मंे प्रवेश कर जायेंगे। सरदार ने महावत को कहा की जल्दी करो। लगाओ हाथी को अंकुश। तोड़ो इस दरवाजे को। महावत ने लगाया अंकुश। हाथी पूरे वेग से दौड़ा और उसने दरवाजे की ओर एक जोर की टक्कर मारी। दरवाजा चरमरा गया परन्तु दरवाजे पर हाथी की उँचाई पर नुकीले कीले गड़े थे उसमें से एक कीले ने हाथी का मस्तक विदीर्ण कर दिया। हाथी दर्द से चिंग्धाडा और मुड़ कर पीछे भागा।
‘‘दूसरा हाथी लाओ’’ चम्पावत ने हुक्म दिया।
दूसरा हाथी पहले वाले की दर्द भरी चित्कार सुन चुका था। वह आया परन्तु कीले देखकर वह टक्कर मारने को तैयार नहीं हुआ।
शक्तावत सरदार ने देखा कि हाथी दरवाजा तोड़ रहे हैं। उन्हे घबराहट हुई। अभी चम्पावत किले में दाखिल हो जायेंगे। वे किले की दीवार के किनारे तक पहुँच गये थे परन्तु उपर से मुगल सैनिक अंदर नहीं जाने दे रहे थे। भीषण युद्ध चल रहा था। शक्तावत सरदार को अपनी प्रतिष्ठा का ध्यान आया। उन्होंने अपने पास निसैनी वाले सरदार को कहा कि तुम मेरी गर्दन काट कर अन्दर फेंक दो। मैं नहीं पहुँच पाया तो क्या हुआ मेरा सिर तो पहिले अन्दर पहुँच ही जायेगा।
सरदार हिचकिचाया शक्तावत। सरदार गरजा
‘‘जल्दी करो हुक्म मानो’’
दूसरे ही क्षण तलवार के एक झटके से शक्तावत सरदार का सर किले केे अन्दर था।
चम्पावत सरदार ने देख लिया कि शक्तावत सरदार निसैनी सबसे ऊँचे झण्डे पर पहुँच चुके हैं और अब किसी भी समय किले में प्रवेश कर जायेेंगे।  वे तुरन्त हाथी पर चढ़े, उसके मस्तक पर पैर रखकर दरवाजे की कीलों पर खड़े हो गये। अब कीले उनकी पीठ की ओर थी और वे सीना ताने कीलों पर खड़े थे।
उन्होंने महावत को हुक्म दिया ‘‘हाथी को मेरे सीने पर चढ़ा दो। बस एक टक्कर से दरवाजा टूट जायेगा। दरवाजे के साथ मैं भी अन्दर चला जाऊँगा, जिन्दा नहीं मरा हुआ ही सही, पहले अंदर मेैं ही घुसूँगा।’’
महावत ने देर नहीं की। मामला समझ गया था। उसने हाथी को कस के अंकुश मारा। हाथी ने दी चम्पावत सरदार के सीने पर एक जोर की टक्कर कि दरवाजा टूटा और सरदार दरवाजे समेत किले के अन्दर जा गिरा।
मुगल सेना हतप्रभ रह गई। किले  का फाटक टूट गया था। सब किले के दरवाजे की ओेर भागे। शक्तावत सेना अन्दर कूद कर मारकाट करने लगी। चम्पावतांें की जौशीली फौज ने दरवाजे के अन्दर प्रवेश कर लिया।
मेवाड़ी सेना ने दुर्गम, दुभेद्य दुर्ग पर सिसोदियाओं का सूर्य ध्वज फहरा दिया।
महाराणा अमर सिंह के लिये यह निर्णय करना मुश्किल हो गया कि शक्तावतों और चम्पावतों में से कौन अधिक बहादुर था?
जयदेव अवस्थी
किताब महल, जालोरी गेट के बाहर
जोधपुर-342001

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