गौरक्षा क्यों महत्वपूर्ण है भारत के लिए : Azad indian Article


भारत में गौ का स्थान सदैव महत्वपूर्ण रहा है। लेकिन आज भारत में गौ हत्या भी हो रही है और ऐसी योजनाएं भी बन रही है कि गौ हत्या को वैध करार दिया जाए । दूसरी ओर एक आन्दोलन यह है कि गौ हत्या बंद करने हेतु भारत सरकार कोई कानून बना दे।
इन हिन्दुओं के अतिरिक्त मुसलमान, इसाई एवं अन्य वर्ग इसके वैज्ञानिक या आयुर्वेद के लाभ को नहीं समझ रहे हैं। इसलिए आज सम्पूर्ण भारतीय जनता के हित मंे गौ रक्षा पर हमारे कर्तव्य को वैज्ञानिक दृष्टि से समझने के आवश्कता है।
तभी हम गौ रक्षा हेतू कानून बनाने तथा गौ हत्या पर प्रतिबंध लगाने में सफल हो सकेंगे। इसलिए संकीर्ण साम्प्रदायिक या धार्मिक भावनाओं से उपर उठकर वैज्ञाानिक ढंग से हमें गौ रक्षा के मूल प्रश्न पर विचार करना है जैसा कि इस लेख मंे नीचे किया जा रहा है ।
गौ रक्षा हेतू ब्रहालीन स्वामी श्री राम सुखदास जी महाराज ने लिखा है-‘‘गायों की रक्षा के लिए भाई बहनों को चाहिए कि वे गायों का पालन करें, उनको अपने घरों मे रखें। गाय का ही दूध-घी खायें, भैंस आदि का नहीं। घरों में गोबर गैस का प्रयोग किया जाए। गायों की रक्षा के उद्देश्य से गोैशालाऐं बनायी जायें, दूध के उद्देश्य से नहीं ।’’

गोवंश की उपयोगिता
गोै की सही उपयोगिता हम पूरे गौ वंश की उपयोगिता से ही आंक सकते है। यह निर्विवाद है कि गाय का दूध मां के दूध जैसा होता है। दूध ही नही गाय का घी भी स्वास्थ्यवर्धक हेै। इसमे कैरोटीन बहुत अधिक मात्रा मे होता है तथा इसमे अनेक ओैषधीय तत्व है। गाय का गोबर और मूत्र भी बहुत उपयोगी एवं गुणकारी है। गाय का गोगर शुद्ध, रोगाणुनाशक, ओैषणीगुण सम्पन्न है व खाद, जैविक गैस और परमाणु रोकने क लिए प्रयोग किया जाता है।

इसी प्रकार गाय का मूत्र धार्मिक अनुष्ठानों मे तो काम आता ही है उसका औषधि महत्व भी बहुत हे। वह रोगाणुनाशक एवं कीअनियंत्रक है। गाय के दूध दही घी मूत्र और गोबर रस के मिश्रण को स्वास्थ्यप्रद टॉनिक कहते है और उसे पंचगव्य की संज्ञा दी जाती है।

गोमूत्र की उपयोगिता
हमें गौ माता और विशेषकर पूरानी बूढ़ी गायों के वध को कानूनी करार करने के पक्ष वालों को यह समझना होगा कि गौ मूत्र में विष को शुद्ध करने की अभूतपूर्व शक्ति है। सभी जीवित प्राणियों के मूत्रों में गौ मूत्र ही सर्वश्रेष्ठ है।
आज भी अनेक प्रयोगशालाओं में इस विषय पर कई प्रकार के प्रयोग जारी हैं जिनके सफल परिणामों को हमें जनता तक पहुंचाना है आज यह संभवना स्पष्ट प्रतीत हो रही है कि विश्व की घातक से घातक बीमारियां गोमूत्र के द्वारा बिना शरीर के अवयवों को हानि पहुंचाये से दूर हो सकती है उनमे प्रमुख हैः- अजीर्ण (इन्डायजेशन), अतिसार आन्त्रवृद्धि, अम्लपित्त, भ्रम बवासीर / पाइल्स, मधुमेह, अफारा , कब्ज, आमवात, उदररोग, लू दंतरोग, अनिद्रा, नेत्ररोग, वात रोग, विसूचिका, श्वास, हिचकी, ह्रदय रोग इत्यादि।
गोमूत्र निर्मल एवं मलशोधक माना गया है। आज भारत सरकार एवं स्वयं सेवी संस्थाओं के द्वारा अनुसंधान करके वैज्ञानिक तथ्यों के प्रचार की आवश्यकता है कि हिन्दू ही नहीं बल्कि सभी भारत के निवासियों के लिए गोरक्षा उनके हित में है। अमेरिका और अन्य कई विदेशों में गोमूत्र की उपयोगिता पर तेजी से अनुसंधान हो रहा हैं यह भी सिद्ध हो चुका है कि गोमूत्र जितना अधिक पुराना होता है उतना ही गुणकारी  होता है।

गोबर की उपयोगिता:
गोबर की खाद धरती का प्राकृतिक आहार है। इसलिए यदि गाय बुढी हो जाय और वह यदि गोबर की कम्पोस्ट खाद तैयार करके उसे उपयोग मे लाई जाए तो धरत की उर्वरा शक्ति धीरे-धीरे बढ़ती रहती है। यही कारण है कि भारत की धरती की उवर्रा शक्ति हजारो वर्षों के बाद आज भी बनी हुई है, जबकि कई देशो में पिछले 60/70 वर्षो से रासायनिक खाद के उपयोग से लाखों हेक्टर भूमि बंजर और अनउत्तपादक हो गई है।
विदेशों की सरकारें अब रासायनिक खाद और जहरीली कीटनाशाक दवाईयों के घातक परिणामों से भली भाँति परिचति हो गई हैं। इटली के प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रो जी ई बीगेउ ने गोबर के अनेक प्रयोग कर यह सिद्ध कर दिया है कि गाय के ताजे गोबर से तपेदिक तथा मलेरिया  के रोगाणु मर जाते हैं। अमेरिका के वैज्ञानिक जैम्स मार्टिन ने गाय के गोबर, खमीर और समुद्र के पानी को मिलाकर एक ऐसा उत्प्रेरक बनाया है जिसके प्रयोग से बंजर भूमि हरी भरी हो जाती है, सूखे तेल के कुआंे मे दुबारा तेल आ जाता है तथा समुद्र की सतह पर बिखरे तेल को वह सोख लेता है। इसके अतिरिक्त गोबर के बने कंडो उर्जा के बेहतर विकल्प हैं।

गोधन राष्ट्रीय सम्पत्ति:
इन्ही गुणों के कारण महात्मा गंाधी ने 29 फरवरी, 1925 को कहा था – ‘‘मैं गाय को सम्पन्नता और सौभाग्य की जननी मानता हूँ। गाय से उत्पन्न होने वाले विभिन्न पदार्थो का उपयोग हमें समझना चाहिए और अन्य व्यक्तियों को भी समय-समय पर समझना चाहिए ।
महर्षि दयानंद के कथानुसार तो गाय की हत्या करने से एक समय मंे केवल 20 व्यक्तियों को ही भोजन दिया जा सकता है जबकि वही गाय पूरे जीवन में कम से कम 20,000 लोगांे को अपने दूध से अमृत तुल्य कर सकती है।

संवेैधानिक जानकारी:
भारतीस संविधान में वर्णित दिशा निर्देश के महत्व को हमें समझना चाहिए। संविधान की निर्देशाात्मक धारा 48 में यह स्पष्ट वर्णन है कि सरकार का यह कर्तव्य  होगा कि वह देश मे उपयोगी, सक्षम दुधारू गोवंश प्रााणियों का संरक्षण और संवर्द्धन करे। कोई भी लोकतांत्रिक सरकार इसके विरूद्ध आचरण नहीं करेगी। यह प्रसन्नता की बात है कि सर्वोच्च न्यायालय ने गुजरात राज्य बनाम मिर्जापुर मोती कुरेशी कसाब जमात एवं अन्य – 2005 (12) उ0 न्या0  580, सिविल अपील संख्या  4937-4940 (1998) एवं अन्य मामलों मे 26-10-2005 मेें एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है कि गौ वध पर प्रतिबंधक कानून संवैधानिक है। हमें चाहिए कि इस निर्णय का खूब प्रचार करें तथा जिन राज्यों मंे गौवध नहीं हुआ है, वहाँ इसे रोकने का कानूून बनवायें।

गोरक्षा हेतू जागरूकताः
भारत मंे अनुमानतः 2,500 गोशालाएं हैं।  इनकी स्थापना तो अहिंसा, करूणा, जीव दया और सेवा की भावना से हो। हम यह देखें कि गोशालाओं की जमीन पर फल फूल  के बाग बगीचे, प्रशिक्षण केन्द्र संशोधन केन्द्र गोदुग्ध बिक्री केन्द्र और अन्य सहायक रचनात्मक प्रवृत्तियां चलानी चाहिए । सरकार को चाहिए कि वह एक अखिल भारत गोसंर्वद्धन आयोग स्थापित करे और उसके अर्न्तगत गोपालन के लिए सहायता और मार्गदर्शन प्रदान हो तथा अनुसंधान और प्रशिक्षण की प्रवृत्ति का संचालन हो।

उपसंहार:
बराबर घटती हुई गोवंश की संख्या और गोहत्या को रोकने के लिए जीवित गायों के संवर्द्धन और संरक्षण आदि के लिए यह नितांत आवश्यक है कि हम सारे भारतवासी गौ के प्रति हमारे कर्तव्यों के लिए जागरूक बनें और गोरक्षा, सरंक्षण आदि के लिए हम अपने कर्तवय का निर्वाह करें।

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