एक ऐसा जासूस “अजीत डोभाल” जो पाकिस्तान में 7 साल मुसलमान बनकर रहा

एक ऐसा भारतीय जो खुलेआम पाकिस्तान को एक और मुंबई के बदले बलूचिस्तान छीन लेने की चेतावनी देने से गुरेज़ नहीं करता, एक ऐसा जासूस जो पाकिस्तान के लाहौर में 7 साल मुसलमान बनकर अपने देश की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध रहा हो। 
 
वे भारत के ऐसे एकमात्र नागरिक हैं जिन्हें शांतिकाल में दिया जाने वाले दूसरे सबसे बड़े पुरस्कार कीर्ति चक्र से सम्मानित किया गया है। यहां हम बात कर रहे हैं केरल कैडर के 1968 बैच के आईपीएस अजीत डाभोल की जो 1972 में भारतीय खुफिया एजेंसी आईबी से जुड़े। मूलत: उत्‍तराखंड के पौडी गढ़वाल से आने वाले अजीत डोभाल ने अजमेर मिलिट्री स्‍कूल से पढ़ाई की है और आगरा विवि से अर्थशास्‍त्र में एमएम किया है।



डाभोल कई ऐसे खतरनाक कारनामों को अंजाम दे चुके हैं जिन्हें सुनकर जेम्स बांड के किस्से भी फीके लगते हैं। वर्तमान में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पद पर आसीन अजीत कुमार डाभोल से बड़े-बड़े मंत्री भी सहमे रहते हैं।
भारतीय सेना द्वारा म्यनमार में सीमापार सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए डाभोल ने भारत के शत्रुओं को सीधा और साफ संदेश दे दिया है कि अब भारत आक्रामक-रक्षात्मक रवैया अख्तियार कर चुका है।
 
भारतीय सेना के एक महत्वपूर्ण ऑपरेशन ब्ल्यू स्टार के दौरान उन्होंने एक गुप्तचर की भूमिका निभाई और भारतीय सुरक्षा बलों के लिए महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी उपलब्ध कराई जिसकी मदद से सैन्य ऑपरेशन सफल हो सका। इस दौरान उनकी भूमिका एक ऐसे पाकिस्तानी जासूस की थी, जिसने खालिस्तानियों का विश्वास जीत लिया था और उनकी तैयारियों की जानकारी मुहैया करवाई थी।

जब 1999 में इंडियन एयरलाइंस की उड़ान आईसी-814 को काठमांडू से हाईजैक कर लिया गया था तब उन्हें भारत की ओर से मुख्य वार्ताकार बनाया गया था। बाद में, इस फ्लाइट को कंधार ले जाया गया था और यात्रियों को बंधक बना लिया गया था।

कश्मीर में भी उन्होंने उल्लेखनीय काम किया था और उग्रवादी संगठनों में घुसपैठ कर ली थी।
उन्होंने उग्रवादियों को ही शांतिरक्षक बनाकर उग्रवाद की धारा को मोड़ दिया था। उन्होंने एक प्रमुख भारत-विरोधी उग्रवादी कूका पारे को अपना सबसे बड़ा भेदिया बना लिया था।

अस्सी के दशक में वे उत्तर पूर्व में भी सक्रिय रहे। उस समय ललडेंगा के नेतृत्व में मिजो नेशनल फ्रंट ने हिंसा और अशांति फैला रखी थी, लेकिन तब डोवाल ने ललडेंगा के सात में छह कमांडरों का विश्वास जीत लिया था और इसका नतीजा यह हुआ था कि ललडेंगा को मजबूरी में भारत सरकार के साथ शांतिविराम का विकल्प अपना पड़ा था।

डोभाल ने वर्ष 1991 में खालिस्तान लिबरेशन फ्रंट द्वारा अपहरण किए गए रोमानियाई राजनयिक लिविउ राडू को बचाने की सफल योजना बनाई थी।


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